जितिया पर्व


Photography By : Sakshi Verma
Content Writing By : Sakshi Ishika

आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। इस साल यह व्रत 10 सितंबर (गुरुवार) को है। यह तीन दिन तक चलने वाला  है। जिवितपुत्रिका के पहले दिन को नहाई-खाई के नाम से जाना जाता है। उस दिन माताएं स्नान करने के बाद ही भोजन ग्रहण करती हैं। जिवितपुत्रिका दिवस पर, एक सख्त उपवास, जिसे खुर जितिया कहा जाता है, पानी के बिना मनाया जाता है। तीसरे दिन व्रत का समापन पारन के साथ होता है, जो दिन का पहला भोजन होता है। हालाँकि अलग अलग जगहों पर जितिया में अलग अलग चीज़ें शुभ मानी जाती है पर यह अधिकतर जीतिया की कहानी के ही इर्द गिर्द बुनी गयी परंपरा है जो प्रचलित है।

1 सनातन धर्म के अनुसार मीट मछ्ली खाना पाप माना जाता है। कई घरों में लोग प्याज लहसुन को भी दोष मानते है, नहाये खाये के दिन से ही कई घरों में प्याज़ लहसुन का सेवन बंद होता है।

2 वही दूसरी ओर बिहार के कई इलाकों में मछली खाकर व्रत करना शुभ माना जाता है। वहाँ के मूल निवासियों का कहना है की यह परंपरा चील सियार की कहानी से प्रेरित है।

3 कुछ स्त्रियां मरुआ के आटे की रोटियां खाती हैं और नोनी का साग खाती है। हालांकि इस परंपरा के पीछे का कारण ठीक से स्पष्ट नहीं है। ऐसा सदियों से होता चला आ रहा है।

4 जितिया की दिन अपने संतान के लिये माँ बड़े आकार के ठेकुआ बनाती है जिसे स्थानीय भाषा मे ओठनगं भी कहते है। बच्चे यह खाने के बाद ही कुछ और खाते है। हालाँकि यह परंपरा अपने अपने कुल देवता के हिसाब से भी परिवतिर्त हो जाती है।

5 शाम को कथा सुनने के बाद महिलाएं अपने गले मे सोने से बने जितिया जिसे लाल धागें में हर साल गाथा जाता है उसे धारण करती है। कई जगहों पर सिर्फ लाल धागा भी पहना जाता है। 

6 अगले दिन सवेरे नहा धोकर इसका पारण किया जाता है। पारण में बेसन की कढ़ी और सफ़ेद चावल बनाया जाता है। 

यह त्योहार मुख्य रूप से नेपाल और बिहार , झारखंड और भारत के पूर्वी उत्तर प्रदेश के भोजपुरी और मैथिली भाषी क्षेत्रों में मनाया जाता है । इसमे लोगो की काफी आस्था भी है।

Source of information - local tales, wikipedia

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